धर्म कर्म
सबसे बड़े योद्धा से प्रसिद्ध दयालु बनने की अनोखी दास्तां
Life of Ashoka the Great: भारत के कोने-कोने से लेकर दुनिया भर में अशोक सम्राट अथवा अशोक महान का नाम लिया जाता है। भारत में ही क्यों अशोक सम्राट तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। अशोक सम्राट का जीवन सबसे बड़े योद्धा से प्रसिद्ध दयालु इंसान बनने की एक अनोखी दास्तां है। हम आपको अशोक सम्राट के पूरे जीवन से परिचित करा रहे हैं।
अशोक, अशोक सम्राट तथा अशोक महान का पूरा जीवन
हम आपको बेहद कम शब्दों में अशोक सम्राट या यूं कहें कि चक्रवर्ती सम्राट अशोक का पूरा जीवन समझा रहे हैं। इतने कम शब्दों में आप अशोक सम्राट को पूरी तरह जान लेंगे।
कान में पड़ी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। नगाड़े बज रहे थे। घोड़े हिनहिना रहे थे। हाथी चिंघाड़ रहे थे। तलवारों की झंकार से दिल दहल रहे थे। घायल रो रहे थे। चारों तरफ शोर ही शोर था। कोई किसी को पूछने वाला न था। सबको अपनी-अपनी पड़ी थी। जिधर देखिए खून ही खून। खोपडियां लुढक़ रही थीं। कटी गरदनों, भुजाओं और टांगों की कोई गिनती न थी। चारों ओर बस लाशें ही लाशें थीं। जमीन पर पड़ी और खून में लथपथ लाशें।
अचानक विजय की दुंदुभी बज उठी। सम्राट अशोक की जय-जयकार होने लगी। अशोक ने कलिंग पर चढ़ाई कर उसे जीत लिया था, परंतु कितनी मँहगी पड़ी थी यह जीत। लगभग एक लाख लोग मारे गए और एक लाख पचास हजार बंदी बनाए गए थे। अशोक ने युद्ध में मारे गए सिपाहियों को देखा। रोती-बिलखती स्त्रियों और बच्चों को देखा। उनका हृदय द्रवित हो उठा, उन्होंने निर्णय लिया कि अब मैं कभी भी तलवार न उठाऊँगा। उन्होंने लोगों के मन को प्रेम से जीता। यह हृदय द्वारा हृदय की जीत थी। यह विजय स्थायी थी। यह प्रेम और शांति की नीति थी। प्रेम के द्वारा उसने इतने बड़े राष्ट्र को एक सूत्र में बाँध दिया था। इस नीति ने भारत को विश्व में बहुत ऊँचा स्थान दिलाया। इसी कारण अशोक को महान कहा जाता है।
अशोक प्रजा को अपनी संतान के समान समझने लगे। वह दीन-दुखियों, वृद्धों और दिव्यांगों का ध्यान रखते और सभी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करते थे। वह पशुओं पर दया करते थे। राज्य के अधिकारियों को उनके आदेश थे कि प्रजा की सुरक्षा का सदैव ध्यान रखें और अपने कर्तव्य का निष्ठा से पालन करें।
अशोक बौद्ध थे, परंतु वह सभी धर्मों का आदर करते थे। वह सदाचार की शिक्षा देते थे। यही उनका धर्म था जिसमें मन की पवित्रता थी, सदाचार था, वाणी की मृदुता थी, हँसी-खुशी रहने की बात थी, दयालुता का व्यवहार था, क्रोध से दूर रहने की सीख थी, घमंड की मनाही थी और ईष्र्या से बचाव था।
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार किया। जो बौद्ध धर्म के अनुयायी नहीं थे उनके साथ भी प्रेम का व्यवहार करते थे। धर्म प्रचार के लिए उन्होंने साम्राज्य के सुदूर भागों में प्रचारक भेजे। इसके अतिरिक्त उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार विदेशों में भी किया। सिंहल द्वीप, चीन और जापान आदि देशों में भी प्रचारक भेजे। उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को भी धर्म का प्रचार करने के लिए भेजा।
अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और उपदेशों को शिलाओं, स्तंभों और गुफाओं में अंकित कराया जिससे वे जनसाधारण तक पहुँच सकें। गौतम बुद्ध के जन्म-स्थान लुंबिनी वन में भी एक लाट लगवाई। हमारे राष्ट्रध्वज के मध्य का चक्र सारनाथ के अशोक स्तंभ से ही लिया गया है। प्राचीन भारत के शासकों में अशोक का स्थान बहुत ऊँचा है। अशोक के कार्य अपनी पीढ़ी और युग से आगे थे। यदि हम उन्हें ‘युग पुरुष’ कहें तो अतिशयोक्ति न होगी।