कल्पना कालहस्ती चंद्रयान -3 की सफलता मे निभायी अहम भूमिका
कल्पना कालहस्ती ने अपने करियर के दौरान कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किये। उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्मश्री भी दिया गया। यह पुरस्कार उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान के महान कार्य के लिये दिया गया।
कल्पना का जन्म 15 मई 1980 मे बैंगलोर, भारत मे हुआ था।शुरु से ही उनकी दिलचस्पी सितारों और अंतरिक्ष को लेकर थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा के दौरान विज्ञान और गणित मे उन्होंने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। चित्तूर जिले की कल्पना कालाहस्ती ने चेन्नई में बीटेक ईसीई की पढ़ाई की। पिता मद्रास हाई कोर्ट के कर्मचारी हैं। मां एक कुशल गृहिणी है। कल्पना बचपन से ही इसरो में नौकरी करने की ख्वाहिश रखती थीं और उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया।
शिक्षा के बाद करियर की शुरुआत:
इन्होनें बीटेक पूरा होने के बाद प्रयास शुरू किए। इसी दौरान 2000 में इसरो की ओर से नौकरियों की घोषणा की गई। फलस्वरूप इन्होनें वहां अप्लाई किया और इन्होंने एक रडार इंजीनियर के रूप में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसएचएआर) में कार्यभार ग्रहण कर लिया।
वहां पांच साल तक काम करने के बाद 2005 में बेंगलुरु में यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में उनका तबादला हो गया। वर्तमान में वह एक सहयोगी परियोजना निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। कल्पना ने चंद्रयान-2 परियोजना समेत कई प्रमुख परियोजनाओं में अपनी सेवाएं दी हैं। वर्तमान चंद्रयान -3 परियोजना में उन्होंने एसोसिएट प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में काम किया। महामारी के समय भी उन्होनें मिशन पर काम जारी रखा।
उन्होंने बताया कि प्रत्येक उपग्रह के निर्माण में आमतौर पर पांच साल से अधिक का समय लगता है। उन्होंने बताया कि हार्डवेयर के डिजाइन और निर्माण के बाद उपग्रह को विभिन्न परीक्षणों से गुजरना होता है। कल्पना के मुताबिक यहां कुछ परीक्षण किए जाते हैं और फिर रॉकेट की मदद से उसे अंतरिक्ष में भेजा जाता है।
पुरस्कार और सम्मान:
कल्पना ने अपने करियर के दौरान कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किये। उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्मश्री भी दिया गया। यह पुरस्कार उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान के महान कार्य के लिये दिया गया। इससे पहले वह दूसरे चंद्र मिशन और मंगलयान मिशन पर काम कर चुकी है। उन्होंने पाच उपग्रहों के डिजाइन में भी भाग लिया।
कल्पना कालाहस्ती जी का कहना है कि इसरो में महिलाओं के लिए कर्तव्य निर्वहन के लिए अनुकूल माहौल है। उन्होंने कहा कि यहां कोई लैंगिक भेदभाव नहीं है। यहा पर कार्य और क्षमता के आधार पर पहचान मिलती है। हालांकि 1990 में महिला कर्मचारियों की संख्या बहुत कम थी, लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है। महिलाओं को समान अवसर मिल रहे हैं। वर्तमान में 24 प्रतिशत महिलाएं तकनीकी क्षेत्र में हैं। बता दे कि इस परियोजना के दौरान कल्पना को उनकी सेवाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दिल्ली आयोग से पुरस्कार मिला था।