लगातार 6 साल तक एक ही स्थान पर बैठे रहे थे भगवान बुद्ध
Lord Buddha: भगवान बुद्ध का नाम हर किसी ने सुना है। अनेक मौकों पर भगवान बुद्ध के ज्ञान के उदाहरण तथा व्याख्या भी की जाती है। शायद यह किसी को न पता हो कि लगातार 6 वर्ष तक एक ही स्थान पर बैठकर ध्यान साधना करने के बाद ही भगवान बुद्ध को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। आज हम आपको भगवान बुद्ध का पूरा परिचय करा रहे हैं।
सिद्धार्थ से बुद्ध तक की यात्रा
बहुत समय पहले नेपाल की तराई में शुद्धोधन नाम के प्रसिद्ध राजा थे। उनकी राजधानी कपिलवस्तु थी। उनके पुत्र का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ सात दिन के ही थे जब उनकी माता महामाया का देहांत हो गया। उनका लालन-पालन उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया। सिद्धार्थ को विद्वानों द्वारा सभी प्रकार की शिक्षा दी गई। वे तीक्ष्ण बुद्धि के थे, जो पढ़ते याद हो जाता। वे राजा के पुत्र थे। अत: उन्हें युद्ध के सभी कौशल सिखाए गए। अभ्यास हेतु उन्हें शिकार के लिए वन भी भेजा जाता था। वे बड़े संवेदनशील थे शिकार करने के बजाय वे सोचते कि क्या पशु-पक्षियों को मारना ठीक है? पशु-पक्षी तो बोल भी नहीं सकते। उनका विचार था कि ‘जिसे मैं जीवन नहीं दे सकता उसका जीवन लेने का मुझे क्या अधिकार है?’ वे बिना शिकार किए ही लौट आते।
एक बार उन्होंने एक हिरन की ओर निशाना साधा। सहसा उनकी दृष्टि पास खड़ी उसकी माँ पर पड़ गई। माँ की बड़ी-बड़ी आँखों में तैरते दया याचना के भावों ने उनकी आत्मा को द्रवित कर दिया। वे तीर नहीं चला सके और लौट आए। बालक सिद्धार्थ जिज्ञासु प्रकृति के थे। उनके व्यवहार में अनोखापन था। विद्वानों ने भविष्यवाणी की थी कि वे एक दिन अपना घर-बार त्याग कर संन्यासी हो जाएंगे। वे संसार को मानवता की शिक्षा देंगे। वे संन्यासी न हो जाएँ इसलिए उनके पिता ने यशोधरा नाम की एक सुंदर कन्या से उनका विवाह कर दिया। सिद्धार्थ ने इसे बंधन माना। पुत्र राहुल हुआ। पिता ने बहुत प्रयत्न किया कि गृहस्थ जीवन में उनका मन लगे परंतु सिद्धार्थ का मन कभी भी परिवार और राजकाज में नहीं लगा।
एक दिन सिद्धार्थ नगर भ्रमण के लिए जा रहे थे। मार्ग में उन्हें एक वृद्ध मिला। उसकी आँखें धेसी थी। चेहरे पर झुर्रियों पड़ी थीं। वह लाठी के सहारे चल रहा था। मनुष्य की ऐसी दयनीय स्थिति देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ। पूछने पर उन्हें सारथी ने बताया कि वृद्ध होने पर सब की यही दशा होती है। उन्हें बहुत दु:ख हुआ। एक दिन शिकार पर जाते समय उन्होंने देखा कि चार लोग एक मृत व्यक्ति को ले जा रहे हैं, फिर उन्हें बताया गया कि वह व्यक्ति मर गया है। सबको एक दिन मरना है। सिद्धार्थ ने ऐसी घटनाएँ देखी कि उनका मन न घर में लगता न वन-उपवन में। वे सोचते रहते मनुष्य को इतने कष्ट क्यों भोगने पड़ते हैं? क्या इनसे छुटकारा मिल सकता है?
एक दिन जब महल के सब लोग सो रहे थे, सिद्धार्थ उठे। वे अपनी पत्नी और नन्हे मुन्ने पुत्र की ओर गए। वहाँ उन्होंने कक्ष में रखे दीपक के प्रकाश में नींद में डूबे उन चेहरों को देखा। एक क्षण को मन में कमजोरी आई परंतु तुरंत ही वे सँभल गए। वे कक्ष के बाहर आए। उन्होंने सेवक को साथ लिया और शीघ्र ही वे घोड़े पर सवार होकर महल से दूर निकल कर एक स्थान पर रुके। वहाँ राजसी वस्त्र उतारकर उन्होनें सेवक को दिए और सादे कपड़े पहन लिए। उन्होंने घोड़ा लेकर सेवक से वापस जाने को कहा। साथ यह भी कहलवा दिया कि अब मैं सत्य की खोज करके ही लौटूंगा। इस समाचार से महल में कोहराम मच गया। ऐश्वर्य का जीवन बिताने वाला राजकुमार अब लोगों के दिए हुए दानों पर जीवन बिताने लगा क्योंकि अब वह सत्य की खोज में लगा था।
संन्यासी की भाँति सिद्धार्थ जगह-जगह घूमते रहे। कुछ दिन बाद वे बोधगया पहुँचे और ज्ञान प्राप्त करने का संकल्प लेकर एक वट वृक्ष के नीचे बैठ गए। छह वर्ष की कठिन साधना के बाद, उन्हें अनुभव हुआ कि उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया है और जीवन की समस्याओं का हल मिल गया है। अब सिद्धार्थ ‘बुद्ध कहलाने लगे। अब गौतम बुद्ध लोगों को उपदेश देने लगे। वे कहते कि संसार में दु:ख ही दु:ख है। दु:ख का कारण सांसारिक वस्तुओं के लिए इच्छा और कामना है। दु:ख से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने ऐसी आठ बातें बताई जो मनुष्य को सदाचार की प्रेरणा देती हैं।
गौतम बुद्ध कहते थे कि जीवन में किसी बात की अति न करो। संतुलित जीवन जियो। अहिंसा का पालन करो। किसी को सताओ नहीं। हत्या न करो। पशुओं की बलि देना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि भाई-चारे का जीवन अपनाओ। प्रेम का व्यवहार करो। पवित्रता से जीवन बिताओ। सत्य का पालन करो। घृणा को घृणा से नहीं, बल्कि प्रेम से जीतो। प्रेम से घृणा खत्म हो जाती है। दूसरों के दु:ख को देखकर प्रसन्न होना अच्छी बात नहीं है। गौतम बुद्ध कहते थे कि दूसरों की भलाई करो। परोपकारी से मित्रता करो। दया, स्नेह और करुणा अपनाओ। स्नेहपूर्ण हृदय सबसे बड़ा धन है। दुर्गुण बुरी चीज है। उसे पनपने न दो। अपने दुर्गुण दूर करो। उन्होंने सागर की तरह गंभीर बनने की सीख दी। अच्छे विचारों को रत्न बताया और मन को जल के समान रखने को कहा।
उनकी शिक्षा थी कि धैर्य से काम करना चाहिए। सहनशीलता से मन काबू में रहता है। उन्होंने किसी का अपमान करने को मना किया। उनका कहना था कि स्वास्थ्य से बड़ा कोई लाभ नहीं। संतोष से बड़ा कोई धन नहीं। प्रेम से बड़ी कोई प्राप्ति नहीं है। दद्वेष के समान कोई अपराध नहीं। बुद्ध ने कहा कि जाति-पॉति का भेद-भाव ठीक नहीं। बौद्ध धर्म को मानने वाले सभी वर्गों के लोग थे। भिक्षुओं के रहने के लिए बौद्ध विहार बनवाए गए। स्वाध्याय तथा बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में बौद्ध भिक्षु अपना जीवन व्यतीत करते थे।
थोडे समय में ही गौतम बुद्ध भारत के अनेक भागों में प्रसिद्ध हो गए। उनकी शिक्षा का प्रभाव भारतीय जीवन के हर पक्ष पर पड़ा। खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार, कथा-साहित्य आदि का कोई भी क्षेत्र अछूता न बचा। अजंता और एलोरा की गुफाओं की कलापूर्ण मूर्तियों पर, साँची तथा सारनाथ के स्तूप और कुशीनगर की मूर्ति, अशोक चक्र और जातक की कथाएँ सभी इस बात की साक्षी हैं कि बौद्ध धर्म ने जीवन के विविध पक्षों को प्रभावित किया। यही नहीं बौद्ध भिक्षु भारतीय संस्कृति को एशिया के अनेक भागों में ले गए। सम्राट अशोक भी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को सुदूर देशों में बौद्ध धर्म प्रचार के लिए भेजा था। गौतम बुद्ध ने अपने प्रेम बंधन में सभी को बाँध लिया।