भारत के पहले प्रसिद्ध डाक्टर थे चरक ऋषि
भारत के सबसे पहले प्रसिद्ध डाक्टर का नाम चरक ऋषि था। उन्हीं के बराबर प्रसिद्ध डाक्टर सुश्रुत भी हुए हैं। यह उन दिनों की बात है जब डाक्टर को वैद्य अथवा चिकित्सक कहा जाता था। यहां हम भारत के सबसे प्रसिद्ध डाक्टरों यानि सबसे पहले वैद्य चरक तथा सुश्रुत का पूरा परिचय आपसे करा रहे हैं। आयुर्वेद में छिपा है डाक्टरी का सारा ज्ञान!
सृष्टि के आरंभ से ही मानव अपनी आयु तथा अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहा है। समय-समय पर विशिष्ट व्यक्तियों को जिन वस्तुओं से कोई अनुभव हुआ उन सिद्धांतों के संकलन से ऐसे ग्रंथों का निर्माण हुआ जो मानव के स्वास्थ्य के लिए कल्याणकारी सिद्ध हुए। ‘आयुर्वेद’ भी ऐसी ही एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है जिसमें स्वास्थ्य संबंधी सिद्धांतों की जानकारियाँ दी गई हैं। –
आयु संबंधी प्रत्येक जानने योग्य ज्ञान (वेद) को आयुर्वेद कहते हैं।
‘आयुर्वेद’ संबंधी सिद्धांतों का क्रमबद्ध संकलन कर ऋषियों ने अनेक संहिताओं का निर्माण किया है। इन संहिताओं में सुश्रुत संहिता शल्य तंत्र प्रधान और चरक संहिता कायचिकित्सा प्रधान ग्रंथ हैं। इन ग्रंथों के रचयिता क्रमशः सुश्रुत तथा चरक हैं।
उनके समय में न आज जैसी प्रयोगशालाएँ थीं, न यंत्र और न ही चिकित्सा सुविधाएँ। अपने ज्ञान और अनुभव से उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसे उल्लेखनीय कार्य किए जिनकी नींव पर आज का चिकित्सा विज्ञान सुदृढ़ता से खड़ा है। आइए चिकित्सा के क्षेत्र में पथप्रदर्शक माने जाने वाले ऐसे ही दो महान चिकित्सकों के बारे में जानें।
डॉक्टर सुश्रुत ने की थी दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी
मध्य रात्रि का समय था। किसी के जोर से दरवाजा खटखटाने से सुश्रुत की नींद खुल गई। “बाहर कौन है ?” वृद्ध चिकित्सक ने पूछा, फिर दीवार से जलती हुई मशाल उतारी और दरवाजे पर जा पहुँचे। “मैं एक यात्री हूँ” किसी ने पीड़ा भरे स्वर में उत्तर दिया। मेरे साथ दुर्घटना घट गई है। मुझे आप के उपचार की आवश्यकता है। यह सुनकर सुश्रुत ने दरवाजा खोला। सामने एक आदमी झुका हुआ खड़ा था, उसकी आँख से आँसू बह रहे थे और कटी नाक से खून। सुश्रुत ने कहा, “उठो बेटा, भीतर आओ। सब ठीक हो जाएगा, अब शांत हो जाओ।”
वह अजनबी को एक साफ-सुथरे कमरे में ले गए। शल्य चिकित्सा के उपकरण दीवारों पर टंगे हुए थे। उन्होंने बिस्तर खोला और उस अजनबी से बैठने के लिए कहा, फिर उसे अपना चोंगा उतारने और दवा मिले पानी से मुँह धोने के लिए कहा। चिकित्सक ने अजनबी को एक गिलास में कुछ द्रव्य पीने को दिया और स्वयं शल्य चिकित्सा की तैयारी करने लगे। बगीचे से एक बड़ा-सा पत्ता लेकर उन्होंने अजनबी की नाक नापी। उसके बाद दीवार से एक चाकू और चिमटी लेकर उन्हें आग की लौ में गर्म किया। उसी गर्म चाकू से अजनबी के गाल से कुछ माँस काटा । आदमी कराहा लेकिन उसका दर्द नशीला द्रव्य पीने से कुछ कम हो गया था ।
गाल पर पट्टी बाँध कर सुश्रुत ने बड़ी सावधानी से अजनबी की नाक में दो नलिकाएँ डाली। गाल से काटा हुआ माँस और दवाइयाँ नाक पर लगाकर उसे पुनः आकार दे दिया, फिर नाक पर घुँघची व लाल चंदन का महीन बुरादा छिड़क कर हल्दी का रस लगा दिया और पट्टी बाँध दी। अंत में सुश्रुत ने उस अजनबी को दवाइयों और बूटियों की सूची दी जो उसे नियमित रूप से लेनी थी। उसे कुछ सप्ताह बाद वापस आने को कहा जिससे वह उसे देख सकें ।
आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व सुश्रुत ने जो किया था उसी का विकसित रूप आज की प्लास्टिक सर्जरी है। सुश्रुत को ‘प्लास्टिक सर्जरी’ का जनक कहा जाता है। सुश्रुत का जन्म छह सौ वर्ष ईसा पूर्व हुआ था। वह वैदिक ऋषि विश्वामित्र के वंशज थे। उन्होंने वैद्यक और शल्य चिकित्सा का ज्ञान वाराणसी में दिवोदास धनवंतरि के आश्रम में प्राप्त किया था। वे पहले चिकित्सक थे जिन्होंने उस शल्य क्रिया का प्रचार किया जिसे आज सिजेरियन ऑपरेशन कहते हैं। वह मूत्र नलिका में पाए जाने वाले पत्थर निकालने में, टूटी हडिड्यों को जोड़ने और मोतियाबिंद शल्य चिकित्सा में दक्ष थे सुश्रुत एक अच्छे अध्यापक भी थे। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा था-
“अच्छा वैद्य वही है जो सिद्धांत और अभ्यास दोनों में पारंगत हो।”
वे अपने शिष्यों से कहा करते थे कि वास्तविक शल्य चिकित्सा से पहले जानवरों की लाशों पर शल्य चिकित्सा का अभ्यास करना चाहिए !
अपनी पुस्तक ‘सुश्रुत संहिता’ में उन्होंने विभिन्न प्रकार के 101 चिकित्सा उपकरणों की सूची दी है। आज भी उन यंत्रों के समान यंत्र वर्तमान चिकित्सक प्रयोग में लाते हैं। वह चिमटियों के नाम उन जानवरों या पक्षियों पर रखते थे जिनकी शक्ल से वे मिलते थे, जैसे- क्रोकोडाइल फारसेप्स, हाकबिल फारसेप्स आदि।
चरक
प्राचीन काल में जब चिकित्सा विज्ञान की इतनी प्रगति नहीं हुई थी, गिने-चुने चिकित्सक ही हुआ करते थे। उस समय चिकित्सक स्वयं ही दवा बनाते, शल्य क्रिया करते और रोगों का परीक्षण करते थे। तब आज जैसी प्रयोगशालाएँ, परीक्षण यंत्र व चिकित्सा सुविधाएँ नहीं थीं, फिर भी प्राचीन चिकित्सकों का चिकित्सा ज्ञान व चिकित्सा स्वास्थ्य के लिए अति लाभकारी थी। दो हजार वर्ष पूर्व भारत में ऐसे ही चिकित्सक चरक हुए हैं, जिन्होंने आयुर्वेद चिकित्सा, के क्षेत्र में शरीर विज्ञान, निदान शास्त्र और भ्रूण विज्ञान पर ‘चरक संहिता’ नामक पुस्तक लिखी । इस पुस्तक को आज भी चिकित्सा जगत् में बहुत महत्त्व दिया जाता है। चरक वैशंपायन के शिष्य थे। इनके ‘चरक संहिता’ ग्रंथ में भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश का ही अधिक वर्णन होने से यह भी उसी प्रदेश के प्रतीत होते हैं।
कहा जाता है कि चरक को शरीर में जीवाणुओं की उपस्थिति का ज्ञान था, परंतु इस विषय पर उन्होंने अपना कोई मत व्यक्त नहीं किया है। चरक को आनुवंशिकी के मूल सिद्धांतों की भी जानकारी थी । चरक ने अपने समय में यह मान्यता दी थी कि बच्चों में आनुवंशिक दोष जैसे-अंधापन, लंगड़ापन जैसी दिव्यांगता माता या पिता की किसी कमी के कारण नहीं बल्कि डिंबाणु या शुक्राणु की त्रुटि के कारण होती थी। यह मान्यता आज एक स्वीकृत तथ्य है।
उन्होंने शरीर में दाँतों सहित 360 हडिड्यों का होना बताया था। चरक का विश्वास था कि हृदय शरीर का नियंत्रण केंद्र है। चरक ने शरीर रचना और भिन्न अंगों का अध्ययन किया था। उनका कहना था कि हृदय पूरे शरीर की 13 मुख्य धमनियों से जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त सैकड़ों छोटी-बड़ी धमनियाँ हैं जो सारे ऊतकों को भोजन रस पहुँचाती हैं और मल व व्यर्थ पदार्थ बाहर ले आती हैं। इन धमनियों में किसी प्रकार का विकार आ जाने से व्यक्ति बीमार हो जाता है।
प्राचीन चिकित्सक आत्रेय के निर्देशन में अग्निवेश ने एक “वृहत संहिता” ईसा से आठ सौ वर्ष पूर्व लिखी थी। इस वृहत संहिता को चरक ने संशोधित किया था जो चरक संहिता के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस पुस्तक का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। आज भी सुश्रुत संहिता तथा चरक संहिता की उपलब्धि इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि ये अपने-अपने विषय के सर्वोत्तम ग्रंथ हैं। ऐसे ही प्राचीन चिकित्सकों की खोज रूपी नींव पर आज का चिकित्सा विज्ञान सुदृढ़ रूप से खड़ा है। इन संहिताओं ने नवीन चिकित्सा विज्ञान को कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय मार्गदर्शन दिया है ।